Tuesday, December 29, 2015

पर-निंदा

भगवान महावीर - 
विषय - पर-निंदा
दुसरे का तिरस्कार न करे |
अपनी बड़ाई न करे |
श्रुत, लाभ, जाति, तपस्विता और बुद्धि 
का मद न करे |
- दशवैकालिक आगम से 
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भगवान महावीर - 
विषय - पर-निंदा 
पर-निंदा 
पापजनक, 
दुर्भाग्य उत्पन्न करनेवाली
और 
सज्जनों को अप्रिय होती है |
वह
खेद,
वैर,
भय,
दुःख,
शोक
और हल्केपन
को
उत्पन्न करती है |
- भगवती आराधना ३७१ से

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भगवान महावीर - 
विषय - पर-निंदा 
जो दूसरों की निंदा कर अपने को गुणवानों में 
स्थापित करने की इच्छा करता है,
वह दूसरों को कड़वी औषधि पिलाकर 
स्वयं रोगरहित होना चाहता है |
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भगवान महावीर - 
विषय - पर-निंदा
सत्पुरुष दुसरे के दोष को देखकर स्वयं लज्जित हो जाता है |
वह दुसरे की निंदा के भय से 
उसके दोष को अपने दोष की तरह छिपाता है |
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भगवान महावीर - 
विषय - पर-निंदा
जल में तैल-बिंदु की तरह 
दुसरे का अल्प गुण भी सत्पुरुष 
को प्राप्त होकर बहुतर हो जाता है |
ऐसा सत्पुरुष दुसरे के दोष को क्या कहेगा ?

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