भगवान महावीर -
विषय - पर-निंदा
दुसरे का तिरस्कार न करे |
अपनी बड़ाई न करे |
श्रुत, लाभ, जाति, तपस्विता और बुद्धि
का मद न करे |
- दशवैकालिक आगम से
=======================
भगवान महावीर -
विषय - पर-निंदा
पर-निंदा
पापजनक,
दुर्भाग्य उत्पन्न करनेवाली
और
सज्जनों को अप्रिय होती है |
वह
खेद,
वैर,
भय,
दुःख,
शोक
और हल्केपन
को
उत्पन्न करती है |
- भगवती आराधना ३७१ से
======================
भगवान महावीर -
विषय - पर-निंदा
जो दूसरों की निंदा कर अपने को गुणवानों में
स्थापित करने की इच्छा करता है,
वह दूसरों को कड़वी औषधि पिलाकर
स्वयं रोगरहित होना चाहता है |
=============================
भगवान महावीर -
विषय - पर-निंदा
सत्पुरुष दुसरे के दोष को देखकर स्वयं लज्जित हो जाता है |
वह दुसरे की निंदा के भय से
उसके दोष को अपने दोष की तरह छिपाता है |
============================
भगवान महावीर -
विषय - पर-निंदा
जल में तैल-बिंदु की तरह
दुसरे का अल्प गुण भी सत्पुरुष
को प्राप्त होकर बहुतर हो जाता है |
ऐसा सत्पुरुष दुसरे के दोष को क्या कहेगा ?
विषय - पर-निंदा
दुसरे का तिरस्कार न करे |
अपनी बड़ाई न करे |
श्रुत, लाभ, जाति, तपस्विता और बुद्धि
का मद न करे |
- दशवैकालिक आगम से
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भगवान महावीर -
विषय - पर-निंदा
पर-निंदा
पापजनक,
दुर्भाग्य उत्पन्न करनेवाली
और
सज्जनों को अप्रिय होती है |
वह
खेद,
वैर,
भय,
दुःख,
शोक
और हल्केपन
को
उत्पन्न करती है |
- भगवती आराधना ३७१ से
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भगवान महावीर -
विषय - पर-निंदा
जो दूसरों की निंदा कर अपने को गुणवानों में
स्थापित करने की इच्छा करता है,
वह दूसरों को कड़वी औषधि पिलाकर
स्वयं रोगरहित होना चाहता है |
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भगवान महावीर -
विषय - पर-निंदा
सत्पुरुष दुसरे के दोष को देखकर स्वयं लज्जित हो जाता है |
वह दुसरे की निंदा के भय से
उसके दोष को अपने दोष की तरह छिपाता है |
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भगवान महावीर -
विषय - पर-निंदा
जल में तैल-बिंदु की तरह
दुसरे का अल्प गुण भी सत्पुरुष
को प्राप्त होकर बहुतर हो जाता है |
ऐसा सत्पुरुष दुसरे के दोष को क्या कहेगा ?
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