तीर्थंकर भगवान् महावीर केवलज्ञान कल्याणक
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भगवान महावीर " कैवल्य " की दिशा में आगे बढ़ रहे थे |
इसके संकेत वातावरण में तैरने लगे थे |
शूलपाणि यक्ष के मंदिर में प्रभु ने उपसर्ग समाप्ति
पर कुछ क्षणों के लिए नींद ली और
उसमें १० स्वप्न देखे |
जो की भविष्य के शुभ इंगित की ओर इशारा कर रहे थे |
प्रभात धर्म का ......................
दूर नहीं था |
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तीर्थंकर भगवान् महावीर केवलज्ञान कल्याणक
वीर प्रभु के कैवल्य प्राप्ति के वे क्षण तीर्थंकर भगवान् महावीर केवलज्ञान कल्याणक
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कितना शक्तिशाली होता है अन्धकार |
जो सब चीजों और सब अस्तित्वों पर आवरण डाल देता है |
पर उससे भी शक्तिशाली होता है प्रकाश,
जिसके उजाले में हर चीज साफ़-साफ़ दिखाई देती है |
भगवान महावीर आज अपूर्व आभा का अनुभव कर रहे हैं |
अस्तित्व पर पड़ा पर्दा अब फटने को तैयार है |
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भगवान गोदोहिका आसन में बैठे हैं |
दो दिन का उपवास है |
सूर्य का आतप ले रहे हैं |
शुक्लध्यान में वर्त्तमान हैं |
ध्यान की श्रेणी का आरोहण करते-करते अनावरण हो गए |
( केवलज्ञान केवल ध्यान की अवस्था में ही होता है )
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तीर्थंकर भगवान् महावीर केवलज्ञान कल्याणक
कैवल्य का सूर्य का उदय
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कैवल्य का सूर्य सदा के लिए उदय हो गया |
कितना पुण्य था वह क्षेत्र -
जम्भिग्राम का बाहरी भाग !
ऋजुबालिका नदी का उत्तरी तट |
जीर्ण चैत्य का ईशानकोण |
श्यामाक गृहपति का खेत |
वहाँ शालवृक्ष के नीचे कैवल्य का सूर्योदय हुआ |
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कितना पुण्य था वह वह काल -
वैशाख शुक्ला दशमी का दिन |
चौथा प्रहर |
विजय मुहूर्त्त |
चंद्रमा के साथ उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र का योग |
इन्ही क्षणों में हुआ कैवल्य का सूर्योदय |
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भगवान अब केवली हो गए |
- सर्वज्ञ और सर्वदर्शी |
न कोई जिज्ञासा |
न कोई जानने का प्रयत्न |
सब कुछ सहज और
सब कुछ आत्मस्थ |
शांत सिन्धु की भांति निस्पंद और निश्चेष्ट |
विघ्नों का ज्वार-भाटा विलीन हो गया |
न तूफ़ान |
न तुमुल कोलाहल |
शांत, शांत और प्रशांत |
ओम अर्हम ...