Wednesday, April 4, 2012

समर्पण

भगवान् महावीर को समर्पित
घोर अंधकारमयी रात्रि में दीप, 
जहाज के टूट जाने पर द्वीप, 
मरुस्थल की चिलचिलाती धुप में पेड़ की छांह,
हिमपात के समय अग्नि के ताप - 
जैसा दुर्लभ आपके चरण कमल का रज-कण इस कलिकाल में मुझे मिला है
प्रभो ! सुषमा-काल में, सतयुग में, मैं भ्रमण करता रहा, पर आपका दर्शन नहीं मिला
इस कलिकाल में मुझे आपका दर्शन मिल गया
मेरे लिए परम हर्ष की बात है
मैं इस कलिकाल को नमस्कार करता हूँ

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