इस तरह
१. इन्द्रभूति
२. अग्निभूति
३. वायुभूति
४. व्यक्त
५. सुधर्मा
६. मंडित
७. मौर्यपुत्र
८. अकम्पित
९. अचलभ्राता
१०. मेतार्य
११. प्रभास
सभी विद्वान आते गए और उनके संदेह का निरावरण होता गया |
सभी ने अपने शिष्यों के साथ प्रभु के पास दीक्षा ली |
संघ की स्थापना हुई |
इन्द्रभूति आदि गणधरों पर प्रभु की वाणी का विचार-प्रसार का दायित्व आ गया |
भगवान से तत्व के बारे में समझ कर फिर जन-मानस में समझाना था |
सभी गणधरों ने १२ सूत्रों( द्वादशांगी ) की रचना की |
उसमें प्रभु के दर्शन और तत्वों को प्रतिपादित किया |
भगवान ने संघ के नेतृत्व को ७ इकाइयों में बाँट दिया |
१. आचार्य
२. उपाध्याय
३. गणी
४. गणधर
५. स्थविर
६. प्रवर्तक
७. गणावच्छेदक
ये शिक्षा, सेवा, धर्म-प्रसार, उपकरण, विहार आदि कार्यों की व्यवस्था करते |
संघीय नेतृत्व का इतना विकास अन्य किसी धर्म-परंपरा में नहीं मिलता |
महावीर ने साधू की दिनचर्या निश्चित कर दी |
मुनि दिन के
प्रथम प्रहर में स्वाध्याय,
दुसरे में ध्यान,
तीसरे में भोजन,
और चौथे में फिर स्वाध्याय करे |
इसी प्रकार रात्री के
पहले प्रहर में स्वाध्याय
दुसरे में ध्यान,
तीसरे में शयन
और चौथे में फिर स्वाध्याय करे |
वस्त्र और भोजन के लिए भगवान ने कुछ व्यवस्थाएं की |
१. जो मुनि जित-लज्ज और जित-परिषह हो , वे विवस्त्र रहें |
२. जो मुनि ऐसा न कर सकें वो एक वस्त्र और एक पात्र रखें |
३. जो मुनि एक वस्त्र से काम न चला सकें वो २ वस्त्र रखें |
४. जो मुनि लज्जा को जीतने में समर्थ हो पर सर्दी नहीं सह सकते वे गर्मी में विवस्त्र हो जाएँ |
भगवान ने जब दीक्षा ली तब देवदुष्य वस्त्र उनके शरीर पर था |
बाद में भगवान विवस्त्र हो गए |
तीर्थंकर होने के बाद भी विवस्त्र रहे |
भगवान पार्श्व के शिष्य विवस्त्र रहने में अक्षम थे |
इसलिए भगवान ने दोनों रूपों को मान्यता दी |