Tuesday, May 1, 2012

वीर प्रभु से गौतम की पहली मुलाक़ात



हजारों लोग एक ही दिशा में जा रहे हैं |
इन्द्रभूति गौतम को कौतुहल हुआ |
खबर लगी श्रमण-नेता महावीर धर्म का उपदेश देंगे |
इन्द्रभूति को अपने ज्ञान पर गर्व था |
सोचा मैं जा कर पराजित कर दूंगा |
समवसरण में पहुंचे अहम् विनय में परिवर्तित हो गया |
मन अपनत्व की अनुभूति से भर गया |
वे साहस बटोर कर महावीर के सामने पहुँच गए |
प्रभु ने इन्द्रभूति को देखा |
मैत्री की सुधा को उडेलते हुए बोले 
- " गौतम इन्द्रभूति ! तुम आ गए ?"
अहं फिर जाग उठा |
" मुझे कौन नहीं जानता |
ये मेरा नाम-गोत्र और परिचय बताकर मुझे फंसाना चाहते हैं |
मैं इनके मायाजाल में नहीं फंसूगा |"
भगवान इन्द्रभूति के मन की भाषा समझकर बोले -
"इन्द्रभूति ! तुम्हे जीव के अस्तित्व के बारे में संदेह है |
क्यों ठीक है ना ?"
इन्द्रभूति के पैरों के नीचे से ज़मीन खिसक गयी |
प्रभु के चरणों में सारे संदेह दूर हो गए |
जहाँ सत्य, वहाँ संदेह को अवकाश कहां |

महावीर ने कहा -
गौतम ! अनुभव का क्षण उपलब्ध होना सहज नहीं है |
क्योंकि मनुष्य अतीत की स्मृति करता है और वर्तमान की उपेक्षा |
आज मैं तुम्हारे सामने हूं,
मेरे अनुभवों से स्वयं को लाभान्वित कर लो |
जो पूछना है, पूछ लो |
प्रमाद मत करो |

" गौतम ! आज जिन दिख नहीं रहे हैं,जो मार्गदर्शक है, वे एकमत नहीं है |"
- आनेवाली पीढ़ियों को इस कठिनाई का अनुभव होगा,
किन्तु अभी मेरी उपस्थिति में तुम समाधान ले लो |
महावीर के इस संबोधन से उद्बुद्ध गौतम ने प्रश्नों की झड़ी लगा दी |
पूरा भगवती सूत्र गौतम के प्रश्नों से भरा हुआ है |
गौतम प्रश्न पूछते चले गए, 
महावीर समाहित करते चले गए |
गौतम प्रभु को कोटिशः नमन ...

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