Thursday, July 11, 2013

सबसे मैत्री

सबसे मैत्री 
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गणधर गौतम पूछते जा रहे थे, 
वीर प्रभु बताते जा रहे थे -
गौतम ! मैं पहला पारणा एक ब्राह्मण के यहाँ किया, 
क्योंकि क्षत्रिय और ब्राह्मण में समन्वय करना चाहता था |
मेरे चारों ओर तुम लोग भी ब्राह्मण ही हो |
फिर, नारी-जाति के उत्थान के लिए १७५ दिन तक भोजन ग्रहण नहीं किया,
चंदनबाला के हाथ से भिक्षा ली |
दास-प्रथा पर मेरा अहिंसक प्रयोग था |
मेरी समता में पशु-पक्षियों का मूल्य कम नहीं है |
चंडकौशिक सर्प मुझे डसता रहा और मैं उसे प्रेम से देखता रहा |

Monday, May 21, 2012

महावीर-वाणी - हिंसा त्याज्य क्यों ?

महावीर-वाणी - हिंसा त्याज्य क्यों ?
सर्व जीवों का सर्व जीवों के साथ
पिता, पुत्र, माता इत्यादि
रूप सम्बन्ध अनेक भवों में हुआ है |
इसलिए मारने के लिए उद्दत हुआ मनुष्य
अपने सम्बन्धी को ही मारता है,
ऐसा समझना चाहिए |
- भगवती आराधना ७६३ 

Saturday, May 19, 2012

महावीर-वाणी - पाप


भगवान् महावीर -
जो पुरुष पाप करता है,
उसे निश्चयतः अपनी आत्मा प्रिय नहीं है,
क्योंकि आत्मा के द्वारा कृत कर्मों का फल आत्मा स्वयं ही भोगती है |
- उत्तराध्ययन ४५ : ३ 

Tuesday, May 1, 2012

संस्कार शुद्धि ही धर्म है

संस्कार शुद्धि ही धर्म है !!!
मैं संस्कारों की शुद्धि को धर्म कहता हूं |
मैं शरीर को कष्ट देने को धर्म नहीं कहता हूं |
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रोगी कड़वी दवा पीता है, 
क्या अनिष्ट कर रहा है ?
ज्वर से पीड़ित मनुष्य स्निग्ध खाना खा रहा है, 
क्या इष्ट कर रहा है ?
- भगवान् महावीर 

नरक जाने का १ कारण - मांसाहार

भगवान महावीर की अहिंसा का पहला सूत्र है -
अनिवार्य हिंसा को नहीं छोड़ सको तो संकल्पी हिंसा को अवश्य छोडो |
भगवान ने नरक में जाने के ४ कारण बताए |
उनमें एक कारण है - मांसाहार |

श्रेष्ठ कौन ?

श्रेष्ठ कौन ?
अभयकुमार - भंते ! आप भिक्षु को श्रेष्ठ मानते हैं 
या गृहस्थ को ?
महावीर - मैं संयम को श्रेष्ठ मानता हूं |
संयमरत गृहस्थ और भिक्षु दोनों ही श्रेष्ठ हैं 
और असंयम रत गृहस्थ और भिक्षु दोनों ही श्रेष्ठ नहीं है |

फर्क - मनुष्य और देव का

फर्क - मनुष्य और देव का
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राजा दशार्णभद्र ने महावीर की वंदना के लिए सेना और वैभव के साथ प्रस्थान किया |
इन्द्र को उसका अहंकार-प्रदर्शन अनुचित लगा |
राजा को नीचा दिखाने के लिए इन्द्र ने अपना वैभव दिखाया |
दशार्णभद्र के अहंकार को चोट पहुंची |
उसने भगवान् महावीर से दीक्षा की प्रार्थना की |
इन्द्र का अहंकार पराजित हो गया |
( देवता प्रत्याख्यान नहीं कर सकते )