Wednesday, December 30, 2015

भगवान महावीर - २७ भव



भगवान् महावीर ने सम्यक्त्व लेने के बाद २७ भव में जन्म लिए,
उनके इस बीच कुछ और भी भव हुए,पर उनका उल्लेख नहीं है.
१. नयसार
२. सौधर्मदेव
३. मरीचि 
४.ब्रह्मदेव
५.कौशिक ब्राहमण 
६.ब्राहमण पुष्यमित्र
७.सौधर्म (प्रथम) देव
८.अग्निहोत्र ब्राहमण
९.ईशान देवलोक
१०.अग्निभूति ब्राहमण 
११.सनतकुमार देव
१२.भारद्वाज ब्राहमण
१३.माहेन्द्र देव
१४.स्थावर ब्राहमण
१५.ब्रह्म देवलोक
१६.विश्वभुति राजपुत्र
१७.महाशुक्र देव
१८.त्रिपृष्ठ वासुदेव
१९.सप्तम नरक 
२०. केसरीसिंह 
२१.चतुर्थ नरक
२२. राजाविमल
२३. प्रियमित्र चक्रवर्ती
२४.महाशुक्रविमान
२५. नंदन
२६.प्राणत देवलोक 
२७. महावीर.

इस तरह महावीर जिनको तीर्थकर केवली होना था कितने जनम लेने पड़े.
और सभी गति में ( देव, मनुष्य, तिर्यंच,नरक ) जन्म भी लेना पड़ा 
अपने कर्मों के अनुसार.

१. नयसार के भव में मुनियों की खूब सेवा करके सम्यक्त्व प्राप्त करके देवलोक में जन्म लिया.

३. मरीचिकुमार - भरत चक्रवर्ती के पुत्र के रूप में जन्म. 
इस चौबीसी के प्रथम तीर्थंकर रिषभ देवजी के पोते. 
शरीर से किरणें निकलती थी,इसलिए नाम मरीचि कुमार रखा गया.
रिषभ देवजी का प्रवचन सुनकर मुनि दीक्षा.
पर शीत और गर्मी सहन नहीं कर सके.
पुनः गृहस्थ बनने से लोग अवज्ञा करेंगे 
इसलिए तापस धर्म स्वीकार किया.

३. मरीचि -भरत ने रिषभ देवजी को पूछा कि इस परिषद् में कोई है जो भविष्य में तीर्थंकर बनेगा ? रिषभ देवजी ने जवाब दिया कि तुम्हारा पुत्र मरीचि अंतिम तीर्थंकर होगा- महावीर.
मरीचि प्रथम वासुदेव बनेगा जिसका नाम होगा त्रिपृष्ठ.
यही मूकानगरी में प्रियमित्र नाम का चक्रवर्ती बनेगा.
भरत ने जब यह बात मरीचि को बताई तो अहंकार से नाचने लगा.

जिन आठ बातों से नीच गोत्र का बंध होता है
उनमे एक है कुल का गौरव करना
मरीचि यही घमंड कर रहा था कि मेरे दादाजी तीर्थंकर,पिताजी चक्रवर्ती,
मैं पहला वासुदेव, फिर चक्रवर्ती, फिर तीर्थंकर भी बनूँगा.

१८. त्रिपृष्ठ वासुदेव - वासुदेव का शासन कठोर, क्रूरतापूर्ण होता है.
वे किसीको माफ़ नहीं करते.
वासुदेव की सभा में संगीत चल रहा था, त्रिपृष्ठ को नींद आने लगी,आदेश दिया संगीत बंद.
सब संगीत में डूबे थे, आज्ञा का पालन नहीं हुआ.
महाराज जब उठे तब शय्यापालक को कहा तुमने मेरी अवज्ञा की,
तुम्हारे कानों में शीशा भर दिया जाए.
वो बेचारा तड़प-तड़प कर मर गया.

१९. उन्नीसवां भव में सातवीं नरक में जन्मे
२०. बीसवें भव में तिर्यंच - सिंह के रूप में जन्मे
२१. इक्कीसवां भव में चौथी नरक में जन्मे.
इसके बाद तिर्यंच के अनेक भव में जन्म लिए, 
वे २७ भवों की गिनती में नहीं आते.
२३. प्रियमित्र चक्रवर्ती बने .
राजपद का भोग किया.
अंत में दीक्षा लेकर तप- संयम की आराधना की.

२५. नंदन के रूप में राजा के यहाँ जन्मे.
पोट्टीलाचार्य का प्रवचन सुनकर विरक्त हुए.
दीक्षा ली और ११,६०,००० मॉस खमण किये.
"तीर्थंकर नाम गोत्र " का अर्जन किया.

२६. देवलोक में जन्मे. अन्य देवों की तुलना में अधिक कांतिमय दीखते थे.
च्यवन के ६ महीने पहले कुछ देव म्लान मुख तथा क्षीण मनोबल जाते हैं.
पर महावीर का जीव म्लान नहीं हुआ क्योंकि भावी तीर्थंकर की आत्मा थी.

Tuesday, December 29, 2015

पर-निंदा

भगवान महावीर - 
विषय - पर-निंदा
दुसरे का तिरस्कार न करे |
अपनी बड़ाई न करे |
श्रुत, लाभ, जाति, तपस्विता और बुद्धि 
का मद न करे |
- दशवैकालिक आगम से 
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भगवान महावीर - 
विषय - पर-निंदा 
पर-निंदा 
पापजनक, 
दुर्भाग्य उत्पन्न करनेवाली
और 
सज्जनों को अप्रिय होती है |
वह
खेद,
वैर,
भय,
दुःख,
शोक
और हल्केपन
को
उत्पन्न करती है |
- भगवती आराधना ३७१ से

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भगवान महावीर - 
विषय - पर-निंदा 
जो दूसरों की निंदा कर अपने को गुणवानों में 
स्थापित करने की इच्छा करता है,
वह दूसरों को कड़वी औषधि पिलाकर 
स्वयं रोगरहित होना चाहता है |
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भगवान महावीर - 
विषय - पर-निंदा
सत्पुरुष दुसरे के दोष को देखकर स्वयं लज्जित हो जाता है |
वह दुसरे की निंदा के भय से 
उसके दोष को अपने दोष की तरह छिपाता है |
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भगवान महावीर - 
विषय - पर-निंदा
जल में तैल-बिंदु की तरह 
दुसरे का अल्प गुण भी सत्पुरुष 
को प्राप्त होकर बहुतर हो जाता है |
ऐसा सत्पुरुष दुसरे के दोष को क्या कहेगा ?

Thursday, December 24, 2015

दीवाली रो दिन बड़ो ....क्यों ?

दीपावली पर गाया जाता है ----
" दीवाली रो दिन बड़ो ,
राखो धरम सों सीर ।"
दीवाली का दिन बड़ा क्यों है ?
कोई कारण तो होगा इसके बड़े होने का ।
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इस दिन के बड़े होने के भी दो कारण है--
गौतम स्वामी ने केवलज्ञान प्राप्त किया ,
महावीर मुक्त हुये --
एक मुक्ति और दूसरा कैवल्य ।
ये दो जहाँ होते हैं वहाँ सब कुछ बड़ा होता है ।
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महावीर स्वामी पंहुच्या निर्वाण ,
गौतम स्वामी नै उपन्यो केवल नाण ।।
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निर्वाण से बड़ा कोई दूसरा तत्व नहीं ।
व्यक्ति का अंतिम लक्ष्य है --- निर्वाण ।
मंज़िल है -- निर्वाण ।
केवलज्ञान बहुत बड़ी शक्ति है ।
केवलज्ञान की स्थिति में ही सत्य का साक्षात्कार होता है ।
निर्वाण का दिन होने से व
कैवल्य की प्राप्ति होने से यह दिन बड़ा कहा जाने लगा ।
- आचार्यश्री महाप्रज्ञजी 

Thursday, July 11, 2013

सबसे मैत्री

सबसे मैत्री 
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गणधर गौतम पूछते जा रहे थे, 
वीर प्रभु बताते जा रहे थे -
गौतम ! मैं पहला पारणा एक ब्राह्मण के यहाँ किया, 
क्योंकि क्षत्रिय और ब्राह्मण में समन्वय करना चाहता था |
मेरे चारों ओर तुम लोग भी ब्राह्मण ही हो |
फिर, नारी-जाति के उत्थान के लिए १७५ दिन तक भोजन ग्रहण नहीं किया,
चंदनबाला के हाथ से भिक्षा ली |
दास-प्रथा पर मेरा अहिंसक प्रयोग था |
मेरी समता में पशु-पक्षियों का मूल्य कम नहीं है |
चंडकौशिक सर्प मुझे डसता रहा और मैं उसे प्रेम से देखता रहा |

Monday, May 21, 2012

महावीर-वाणी - हिंसा त्याज्य क्यों ?

महावीर-वाणी - हिंसा त्याज्य क्यों ?
सर्व जीवों का सर्व जीवों के साथ
पिता, पुत्र, माता इत्यादि
रूप सम्बन्ध अनेक भवों में हुआ है |
इसलिए मारने के लिए उद्दत हुआ मनुष्य
अपने सम्बन्धी को ही मारता है,
ऐसा समझना चाहिए |
- भगवती आराधना ७६३ 

Saturday, May 19, 2012

महावीर-वाणी - पाप


भगवान् महावीर -
जो पुरुष पाप करता है,
उसे निश्चयतः अपनी आत्मा प्रिय नहीं है,
क्योंकि आत्मा के द्वारा कृत कर्मों का फल आत्मा स्वयं ही भोगती है |
- उत्तराध्ययन ४५ : ३ 

Tuesday, May 1, 2012

संस्कार शुद्धि ही धर्म है

संस्कार शुद्धि ही धर्म है !!!
मैं संस्कारों की शुद्धि को धर्म कहता हूं |
मैं शरीर को कष्ट देने को धर्म नहीं कहता हूं |
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रोगी कड़वी दवा पीता है, 
क्या अनिष्ट कर रहा है ?
ज्वर से पीड़ित मनुष्य स्निग्ध खाना खा रहा है, 
क्या इष्ट कर रहा है ?
- भगवान् महावीर